हेस्थ डेस्क: महिलाएं जल्दी परेशान होती हैं और जल्दी रो भी पड़ती हैं। उनके दिलों-दिमाग़ से बातें जल्दी ग़ायब नहीं होतीं। दोष उनका नहीं है। कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय गर्ग महिलाओं के अक्सर परेशान रहने और उनकी तुनकमिज़ाजी के कुछ ख़ास कारण बताते हैं।
महिलाओं से अधिक अपेक्षाएं करती हैं
कभी पत्नी की तबियत ख़राब हो और पति कच्ची-पक्की रोटी और पनीली सब्ज़ी बनाकर बीवी-बच्चों को खिला दे, तो सब कहेंगे, ‘अरे वाह! कितना केयरिंग पति है, बीवी बीमार है तो भी बेचारे से जैसा बन पड़ा, बनाकर खिला दिया।’ या पति बच्चे को तैयार करके स्कूल ले जाए और भले ही उसके जूतों पर पॉलिश न हो, कपड़े ठीक से आयरन न किए गए हों, बाल ऊटपटांग तरीक़े से संवारे गए हों, लेकिन लोग कहेंगे, ‘देखो, कितना ज़िम्मेदार पति है, ज़रा भी आलस नहीं है, इतनी सुबह उठकर बच्चे को तैयार भी कर दिया और स्कूल भी ले आया। हालांकि ठीक यही काम कोई महिला करे, तो लोग तंज़ कसे बिना नहीं रहेंगे, ‘अरे बस ऑफ़िस में कम्प्यूटर चलाना जानती है, खाना बनाने की ज़रा भी सुध नहीं है’ या फिर, ‘ये कैसी फूहड़ मां है जो बच्चे के कपड़ों, जूतों का ज़रा भी ध्यान नहीं रखती। बच्चे के लिए इनके पास पंद्रह मिनट का भी समय नहीं और ख़ुद हीरोइन बनी फिरती है!’ ज़ाहिर है, महिलाओं से ऑफ़िस और घर दोनों जगह परफैक्ट होने की उम्मीद रखी जाती है, जिसके कारण उन पर मानसिक दबाव अधिक होता है और वे तनाव में रहती हैं।
भरपूर नींद भी नहीं मिलती
महिलाओं को पुरुषों से अधिक नींद की ज़रूरत होती है, लेकिन वे अक्सर पूरी नींद नहीं ले पातीं। उन्हें घरेलू कामकाज निपटाने के लिए सुबह नियमित समय पर ही उठना पड़ता है, जबकि पुरुष आमतौर पर सुबह देर तक सोकर अपनी नींद पूरी कर लेते हैं। ऊपर से अगर पत्नी कामकाजी हो तो दोपहर में भी सो पाने का कोई मौक़ा नहीं। यह प्रामाणिक वैज्ञानिक तथ्य है कि नींद पूरी न हो पाने की वजह से व्यक्ति एंग्ज़ायटी, स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। और ऐसे में पति किसी प्रकार का तंज़ कस दे या कोई हैरान-परेशान कर दे तो पत्नी (महिला) का तुनक जाना स्वाभाविक है।
तनाव की मनोवैज्ञानिक वजह
वेब प्रोग्राम बनाने वाली कंपनी लैंटर्न द्वारा करवाए गए शोध में पता चला है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में 11 फ़ीसदी अधिक तनावग्रस्त और 16 फ़ीसदी अधिक चिंतित रहती हैं। फैमिली साइकोलॉजिस्ट एमी शोफनर ने एक रिपोर्ट में बताया कि महिलाओं में स्ट्रेस लेवल अधिक रहने की वजह है चीज़ों या समस्याओं के प्रति उनका नज़रिया। महिलाएं तनाव देने वाले व्यक्ति या वस्तु से दूर नहीं जातीं। वे बार-बार समस्याओं की गहराई में जाती हैं और उनमें उलझती हैं, इससे उनके तनाव का स्तर बढ़ जाता है। जबकि पुरुष ‘फाइट या फ्लाइट’ यानी लड़ो या फिर भाग जाओ पर यक़ीन रखते हैं।
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पत्नी को नहीं मिलता ध्यान
पत्नी चाहती है कि पति उसकी चिंता-फ़िक्र करे और उसे ख़ुद का ध्यान रखने के लिए कहे। लेकिन ऐसा नहीं होता। पति अक्सर ख़ुद के काम में ही व्यस्त रहते हैं या पत्नी की किसी समस्या को नोटिस नहीं करते, तो वह तनाव में रहने लगती है। अगर पति उसके तनाव पर ग़ौर नहीं कर पाते तो वह ज़रा खुलकर अपनी भावनाएं प्रकट करने लगती है और ग़ुस्से का इज़हार करती है। जबकि, पति चुप्पी साधकर उसके ग़ुस्से पर इसलिए प्रतिक्रिया नहीं देते कि इस समय उसका दिमाग़ गर्म है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह स्थिति ‘पोलराइज़ेशन’ कहलाती है। इसके तहत पति अपनी सोच पर अड़ जाता है और पत्नी अपनी सोच पर।
ध्यान देने की बात है
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अगर यह तय है कि स्त्रियों को तनाव अधिक होता ही है, तो इस स्थिति से निपटने की ज़रूरत है। स्त्रियां स्वयं कोशिश करें और पुरुष भी मदद करें। स्त्रियों की सबसे बड़ी मदद तो यह ही हो सकती है कि पुरुष उन्हें अपने नज़रिए और अपने रवैए के मापदंड से न तौलें। उनसे न कहें कि ‘मेरी तरह रहो, टेंशन मत लो।’